पहली बार किसी वर्तमान राष्ट्रपति ने भगवान अयप्पा के दरबार में चढ़ाई 18 पवित्र सीढ़ियां
केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में बुधवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया, जब भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भगवान अयप्पा के दर्शन किए। वह देश की पहली कार्यरत राष्ट्रपति हैं जिन्होंने इस पवित्र मंदिर में पूजा-अर्चना की है।
उनकी यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

कैसे हुआ राष्ट्रपति का स्वागत
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का स्वागत राज्य के देवस्वम मंत्री वी. एन. वसावन और त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड (TDB) के अध्यक्ष पी. एस. प्रसन्नथ ने किया।
मंदिर के तनत्री (मुख्य पुजारी) कंदारारू महेश मोहनारू ने उन्हें पूर्णकुंभ से सम्मानित किया।
राष्ट्रपति ने पारंपरिक रीति से 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़कर भगवान अयप्पा के गर्भगृह में प्रवेश किया और इ्रमुडिकट्टू (पवित्र गठरी) सिर पर रखकर पूजा की।
उनके साथ आए दल ने भी पारंपरिक व्रत और पूजा के नियमों का पालन किया।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे — पुलिस और देवस्वम बोर्ड ने दर्शन के दौरान श्रद्धालुओं की एंट्री पर कुछ समय के लिए रोक लगाई ताकि राष्ट्रपति की यात्रा सुचारू रूप से पूरी हो सके।
राष्ट्रपति की यात्रा का क्रम
राष्ट्रपति मुर्मू का यह दौरा पम्बा से शुरू हुआ। आमतौर पर भक्त पैदल ट्रेक करके सन्निधानम (मुख्य मंदिर परिसर) तक पहुंचते हैं, लेकिन राष्ट्रपति के लिए विशेष चार-पहिया वाहन की व्यवस्था की गई थी ताकि सुरक्षा और सुविधा दोनों सुनिश्चित की जा सके।
सन्निधानम पहुंचने के बाद उन्होंने भगवान अयप्पा की मूर्ति के सामने आरती की और पूजा की।
इसके बाद उन्होंने मलिकप्पुरम देवी मंदिर सहित आस-पास के अन्य पवित्र स्थलों के भी दर्शन किए।
पूजा के बाद वह त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड के अतिथि गृह में विश्राम के लिए गईं।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह यात्रा क्यों खास है
इस यात्रा के कई ऐतिहासिक पहलू हैं:
- पहली कार्यरत राष्ट्रपति का दौरा:
भारत के इतिहास में पहली बार कोई वर्तमान राष्ट्रपति सबरीमाला मंदिर गई हैं। इससे पहले केवल एक बार पूर्व राष्ट्रपति वी. वी. गिरी 1970 के दशक में यहां पहुंचे थे, वह भी डोली के माध्यम से। - पहली महिला राष्ट्रपति द्वारा दर्शन:
यह यात्रा इसलिए भी प्रतीकात्मक है क्योंकि द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति हैं।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं की आयु संबंधी प्रवेश पर लंबे समय से विवाद रहा है। ऐसे में राष्ट्रपति का वहां पहुंचना समावेशिता और समानता का एक सशक्त संदेश माना जा रहा है। - धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक:
भगवान अयप्पा को “हरिहरपुत्र” कहा जाता है — यानी हरि (विष्णु) और हर (शिव) के पुत्र।
इस कारण सबरीमाला मंदिर को वैष्णव और शैव परंपराओं के संगम के रूप में देखा जाता है।
राष्ट्रपति की यात्रा इस एकता की भावना को भी मजबूत करती है।
सबरीमाला मंदिर का महत्व
केरल के पठानमथिट्टा जिले में स्थित सबरीमाला मंदिर दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
यहाँ भगवान अयप्पा के भक्त हर साल करोड़ों की संख्या में आते हैं।
माना जाता है कि यह मंदिर पहाड़ियों में घने जंगलों के बीच स्थित है, और यहां पहुंचने से पहले भक्तों को 41 दिन का व्रत (व्रतम) करना पड़ता है।
इस दौरान वे शुद्ध जीवनशैली, शाकाहार, संयम और प्रार्थना का पालन करते हैं।
यह तपस्या जैसी यात्रा होती है, जिसमें व्यक्ति का शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।
भक्त काले या नीले वस्त्र पहनते हैं, हाथ में तुलसी या रुद्राक्ष की माला रखते हैं, और “स्वामीये शरणम अय्यप्पा” कहते हुए यात्रा करते हैं।
महिलाओं की एंट्री पर पृष्ठभूमि
सबरीमाला मंदिर महिलाओं के प्रवेश को लेकर लंबे समय से विवादों में रहा है।
यहाँ परंपरागत रूप से 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती थी।
इस नियम को 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया और सभी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी।
हालाँकि, यह निर्णय समाज में विभाजित प्रतिक्रियाओं के साथ आया — कुछ ने इसे समानता का कदम कहा, तो कुछ ने परंपरा पर प्रहार बताया।
ऐसे में राष्ट्रपति का यहां आना एक संतुलन का प्रतीक माना जा रहा है — परंपरा का सम्मान करते हुए आधुनिकता और समानता का संदेश।
आध्यात्मिक और राजनीतिक संकेत
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हमेशा से अपनी आध्यात्मिक सादगी और धार्मिक आस्था के लिए जानी जाती हैं।
झारखंड से आने वाली मुर्मू आदिवासी समुदाय से हैं और अक्सर पारंपरिक धार्मिक स्थलों पर जाती रही हैं।
सबरीमाला का यह दौरा न केवल व्यक्तिगत भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह दिखाता है कि राज्य प्रमुख भी धर्म और संस्कृति के प्रति समर्पित हैं।
राजनीतिक रूप से भी यह यात्रा संदेश देती है कि भारत की राजनीतिक और धार्मिक परंपराएँ आपस में जुड़ी हुई हैं — लेकिन संविधान के मूल्यों जैसे समानता और सम्मान को साथ लेकर।
भक्तों और जनता की प्रतिक्रिया
राष्ट्रपति के दर्शन से कई भक्तों ने खुशी जताई।
कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “यह गर्व का क्षण है जब देश की सर्वोच्च प्रतिनिधि भगवान अयप्पा के दरबार में पहुंचीं।”
कुछ ने यह भी कहा कि इससे मंदिर की अंतरराष्ट्रीय पहचान और बढ़ेगी क्योंकि यह भारत के राष्ट्रपति कार्यालय से जुड़ा एक ऐतिहासिक अवसर है।
यह यात्रा सिर्फ पूजा नहीं, एक प्रतीक है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की सबरीमाला यात्रा सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं है।
यह भारत की संविधानिक समानता, धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बन गई है।
उनकी यह यात्रा यह संदेश देती है कि —
“भारत में परंपरा और आधुनिकता विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।”
सबरीमाला की पहाड़ियों में गूंजते “स्वामीये शरणम अय्यप्पा” के बीच देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति का वहां पहुंचना, निस्संदेह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का विषय रहेगा।
द्रौपदी मुर्मू की यह यात्रा भारतीय लोकतंत्र के उस सुंदर पहलू को दर्शाती है, जहाँ एक आदिवासी महिला सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होकर भी अपनी जड़ों और संस्कृति से जुड़ी रहती है।
यह कदम धार्मिकता, समानता और सांस्कृतिक गौरव — तीनों का संगम है।








