शेख हसीना के करीबी का दावा — अमेरिका और क्लिंटन परिवार ने मिलकर करवाया बांग्लादेश में तख्तापलट

बांग्लादेश में पिछले साल हुए तख्तापलट पर अब बड़ा खुलासा हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के करीबी और पूर्व मंत्री मोहिबुल हसन चौधरी ने दावा किया है कि हसीना सरकार को गिराने के पीछे अमेरिकी एजेंसी USAID और क्लिंटन परिवार की साजिश थी। चौधरी के अनुसार, मोहम्मद यूनुस और क्लिंटन परिवार ने मिलकर बांग्लादेश में तख्तापलट करवाया और यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया। उन्होंने कहा कि 2018 से ही इस साजिश की तैयारी शुरू कर दी गई थी। हालांकि अमेरिका ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है।

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बांग्लादेश में पिछले साल (2024) जो हुआ, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया था।
5 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) को न केवल पद छोड़ना पड़ा, बल्कि उन्हें देश भी छोड़ना पड़ा।
उन्होंने अपनी बहन शेख रेहाना (Sheikh Rehana) के साथ भारत में शरण ली।

इससे पहले जुलाई 2024 में देश में छात्र आंदोलन भड़क उठा था। ये आंदोलन “क्वोटा सुधार आंदोलन” के नाम से शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही हफ्तों में ये सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गया।

हजारों छात्र और आम नागरिक सड़कों पर उतर आए। हिंसा हुई, सरकारी दफ्तरों में आगजनी हुई, और आखिरकार दबाव में आकर हसीना को इस्तीफा देना पड़ा।

उनके इस्तीफे के तुरंत बाद संसद भंग कर दी गई और अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनाई गई।


अब आया सबसे बड़ा खुलासा

एक साल बाद अब शेख हसीना के करीबी और बांग्लादेश के पूर्व मंत्री मोहिबुल हसन चौधरी ने इस पूरे घटनाक्रम पर बड़ा दावा किया है।
उनके मुताबिक, 2024 में हुआ यह “जन-आंदोलन” असल में एक सोची-समझी साजिश थी — और इसके पीछे अमेरिकी ताकतें और क्लिंटन परिवार शामिल थे।

हसन चौधरी ने कहा कि शेख हसीना की सरकार को गिराने के पीछे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन (Bill Clinton) और उनका परिवार था।
उन्होंने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस, जो उस समय अमेरिका में रह रहे थे, क्लिंटन परिवार और जो बाइडन प्रशासन से करीबी संबंध रखते थे।


“USAID फंडिंग से हुई साजिश”

हसन चौधरी ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश में तख्तापलट के लिए अमेरिकी एजेंसी USAID (United States Agency for International Development) की फंडिंग का इस्तेमाल किया गया।

उनके मुताबिक, इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट (IRI) नाम का एक अमेरिकी NGO भी इस मिशन में शामिल था।
इन संस्थाओं के जरिए यूनुस और क्लिंटन परिवार ने बांग्लादेश में एंटी-हसीना माहौल तैयार किया।

“2018 से ही शेख हसीना की सरकार को अस्थिर करने की योजना बनाई जा रही थी। USAID की फंडिंग का इस्तेमाल करके बांग्लादेश में धीरे-धीरे आंदोलन को हवा दी गई।”
— मोहिबुल हसन चौधरी (पूर्व मंत्री, बांग्लादेश)


क्लिंटन और यूनुस की नजदीकी पर उठे सवाल

मोहम्मद यूनुस को “ग्रामीण बैंक” और “माइक्रोफाइनेंस मॉडल” के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था।
वे लंबे समय से क्लिंटन फाउंडेशन और अमेरिका के कई राजनीतिक समूहों से जुड़े रहे हैं।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और हिलेरी क्लिंटन दोनों यूनुस के कार्यों की प्रशंसा करते रहे हैं।

अब आरोप ये हैं कि इन्हीं रिश्तों के जरिए यूनुस को राजनीतिक रूप से आगे लाया गया और बांग्लादेश की सत्ता उनसे जुड़ी ताकतों को सौंपने की कोशिश हुई।


डोनाल्ड ट्रंप ने बंद की थी फंडिंग

हसन चौधरी ने यह भी बताया कि जब डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) दोबारा सत्ता में आए, तो उन्होंने कई देशों, जिनमें बांग्लादेश भी शामिल था, को दी जा रही USAID फंडिंग पर रोक लगा दी थी।
उनके मुताबिक, “ट्रंप प्रशासन को इस तरह की राजनीतिक फंडिंग की जानकारी थी, इसलिए उन्होंने इसे बंद कर दिया।”

लेकिन बाइडन सरकार आने के बाद फिर से यह फंडिंग चालू हुई — और उसी दौरान बांग्लादेश में माहौल बिगड़ना शुरू हुआ।


अमेरिका ने किया इनकार

इन आरोपों पर अमेरिकी सरकार और क्लिंटन परिवार की तरफ से कोई आधिकारिक जवाब नहीं आया है।
हालांकि, अमेरिकी दूतावास ने कहा है कि यह आरोप “पूरी तरह झूठे और बेबुनियाद” हैं।

USAID ने भी बयान जारी कर कहा कि उनका मकसद केवल “विकास और मानवीय सहायता” देना है, किसी भी देश की राजनीतिक दिशा तय करना नहीं।


देश में हिंसा और अस्थिरता

शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद बांग्लादेश में हिंसा और अस्थिरता बढ़ गई।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार,

  • 637 लोगों की भीड़ हिंसा में मौत हुई,
  • सैकड़ों हिंदू और अल्पसंख्यक परिवारों ने पलायन किया,
  • कानून-व्यवस्था पूरी तरह कमजोर हो गई।

The Guardian और Le Monde की रिपोर्टों के अनुसार,

“हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में भीड़ का शासन (Mob Rule) चल रहा है। सेना और अंतरिम सरकार पर नियंत्रण का सवाल बना हुआ है।”


भारत की भूमिका

शेख हसीना भारत की करीबी मानी जाती थीं।
उनके भारत आने के बाद भारत सरकार ने उन्हें अस्थायी सुरक्षा और राजनीतिक शरण दी थी।
भारत ने आधिकारिक रूप से बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए स्थिति पर नजर रखी जा रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विदेशी हस्तक्षेप के आरोप सच साबित होते हैं, तो इसका असर भारत की सुरक्षा और पूर्वोत्तर राज्यों पर भी पड़ सकता है।


विशेषज्ञों का विश्लेषण

राजनैतिक विश्लेषक और दक्षिण एशिया मामलों के जानकारों के अनुसार,

  • मोहिबुल हसन चौधरी के आरोप राजनीतिक रूप से संवेदनशील हैं।
  • अमेरिका और क्लिंटन परिवार पर पहले भी “रेजिम चेंज” (Regime Change) की कोशिशों के आरोप लगते रहे हैं — जैसे अफगानिस्तान, लीबिया और सीरिया में।
  • लेकिन बांग्लादेश के मामले में अब तक कोई ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं हुए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि आंदोलन की जड़ें घरेलू कारणों में थीं — जैसे

  • बेरोजगारी,
  • सरकारी भ्रष्टाचार,
  • लोकतंत्र की कमी,
  • और युवाओं का असंतोष।

इन्हीं कारणों से आंदोलन को जनसमर्थन मिला और विदेशी ताकतों ने उस माहौल का फायदा उठाया हो सकता है।


आगे क्या?

  1. स्वतंत्र जांच की मांग:
    अंतरिम सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह इस “अमेरिकी साजिश” की जांच करे।
  2. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
    भारत, चीन और रूस इस घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं।
    अगर अमेरिका की भूमिका साबित होती है तो यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को पूरी तरह बदल सकता है।
  3. मानवाधिकार और स्थिरता:
    संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने बांग्लादेश में हिंसा रोकने की अपील की है।

निष्कर्ष

शेख हसीना की विदाई और बांग्लादेश में हुआ तख्तापलट सिर्फ राजनीतिक घटना नहीं थी —
यह दक्षिण एशिया की ताकतों के बीच चल रहे “प्रॉक्सी गेम” का एक हिस्सा भी हो सकता है।

मोहिबुल हसन चौधरी के आरोपों ने इस कहानी को एक नया मोड़ दे दिया है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इन आरोपों की जांच करती है या यह मामला भी धीरे-धीरे राजनीतिक धुंध में खो जाएगा।


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👨🏻‍🏫सोमेश

सोमेश, जिन्होंने MBA और BA (जनरलिस्ट) में पढ़ाई की है, को 6 साल का अनुभव है। वे अधिकतर टेक्नोलॉजी न्यूज़, मोबाइल रिव्यू, Sports, बिज़नेस और फाइनेंस जैसे कंटेंट पर काम करते हैं।

पहले उन्होंने एक प्रख्यात अखबार में काम किया, लेकिन बाद में उन्होंने निश्चय किया कि वह स्वतंत्र रूप से काम करेंगे और हमारे साथ जुड़े। उनके लेख गहरी समझ और आसान भाषा में होते हैं, जो पाठकों के लिए बहुत ही जानकारीपूर्ण और उपयोगी होते हैं।

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