नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही (मार्च से सितंबर 2025) के दौरान कुल 64 टन सोना विदेशों से भारत वापस लाया है। यह कदम वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव के बीच भारत की वित्तीय सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में अहम माना जा रहा है।

RBI के पास अब कितना सोना है?
सितंबर 2025 के अंत तक RBI के पास कुल 880.8 टन सोना हो गया है। इनमें से 575.8 टन सोना भारत में सुरक्षित रखा गया है, जबकि करीब 290.3 टन सोना अभी भी विदेशों में मौजूद है। विदेशों में रखा अधिकांश सोना Bank of England और Bank for International Settlements (BIS) के वॉल्ट्स में सुरक्षित है।
मार्च 2023 से अब तक RBI लगभग 274 टन सोना विदेशों से भारत में वापस मंगा चुका है। यह भारतीय रिजर्व बैंक के इतिहास में सबसे बड़े सोना-पुनर्प्राप्ति अभियानों में से एक है। Source -DDNews
सोना वापस लाने की जरूरत क्यों पड़ी?
1. वैश्विक वित्तीय अस्थिरता का खतरा
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया भर में आर्थिक प्रतिबंध (Sanctions) और संपत्ति फ्रीज़ (Asset Freeze) जैसी घटनाओं में तेजी आई है। कई देशों ने देखा कि विदेशी बैंकों में रखी संपत्तियाँ राजनीतिक कारणों से ब्लॉक की जा सकती हैं।
ऐसे में भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि देश का मूल्यवान सोना भारत के नियंत्रण में रहे।
2. सुरक्षा और नियंत्रण
जब सोना विदेश में होता है, तो उस पर प्रत्यक्ष नियंत्रण सीमित होता है। किसी भी अंतरराष्ट्रीय संकट या वित्तीय युद्ध की स्थिति में विदेश में रखा सोना असुरक्षित हो सकता है।
एक अर्थशास्त्री के शब्दों में — “अगर सोना आपके पास नहीं, तो वह वास्तव में आपका नहीं।”
3. RBI की रिजर्व मैनेजमेंट रणनीति
RBI अपने विदेशी मुद्रा भंडार को सुरक्षित संपत्तियों में विविध रूप से रखता है। सोना हमेशा से एक सेफ हेवन एसेट (Safe Haven Asset) माना गया है। बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच RBI ने सोने का घरेलू भंडारण बढ़ाने को तरजीह दी है।
4. आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
देश के अंदर सोने को रखने से न केवल स्वायत्तता बढ़ती है, बल्कि यह आर्थिक आत्मनिर्भरता (Economic Sovereignty) की दिशा में एक बड़ा संकेत भी है।
भारत के लिए इसका क्या मतलब है?
- राष्ट्रीय वित्तीय सुरक्षा में मजबूती
 विदेशों से सोना वापस लाने से भारत की संपत्ति अब अपने नियंत्रण में है। यह कदम भविष्य के किसी भी अंतरराष्ट्रीय संकट के दौरान सुरक्षा कवच का काम करेगा।
- विदेशी निर्भरता में कमी
 पहले भारत के सोने का बड़ा हिस्सा विदेशी बैंकों के वॉल्ट्स में रखा होता था। अब धीरे-धीरे यह अनुपात घटाया जा रहा है।
- सोने की बढ़ती कीमतों का असर
 अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें हाल के महीनों में लगभग 52% तक बढ़ी हैं। भारत में भी सोना ₹1,20,000 प्रति 10 ग्राम के आसपास कारोबार कर रहा है। RBI के इस कदम से सोने की मांग और स्थिरता दोनों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- निवेशकों के लिए संकेत
 केंद्रीय बैंक द्वारा घरेलू भंडारण बढ़ाना निवेशकों को संकेत देता है कि सोना आने वाले समय में एक स्थिर और सुरक्षित निवेश बना रहेगा।
वैश्विक संदर्भ में RBI की रणनीति
दुनिया भर में केंद्रीय बैंक अब विदेशी बांडों के बजाय सोने पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं। चीन, तुर्की, पोलैंड, हंगरी और रूस जैसे देशों ने हाल के वर्षों में अपने सोने के भंडार में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
भारत का यह कदम उसी वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा माना जा रहा है, जहाँ देश अपनी संपत्तियों को “फिजिकल गोल्ड” के रूप में अपने नियंत्रण में रख रहे हैं।
RBI पहले भी धीरे-धीरे यह प्रक्रिया अपना चुका है। पिछले कुछ वर्षों में उसने अपनी सोने की होल्डिंग में लगातार बढ़ोतरी की है, जिससे अब भारत दुनिया के शीर्ष दस स्वर्ण भंडार वाले देशों में शामिल हो गया है।
चुनौतियाँ भी कम नहीं
हालाँकि सोना भारत लाने से नियंत्रण तो बढ़ता है, लेकिन इससे जुड़ी कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ भी हैं —
- सुरक्षा व्यवस्था: इतने बड़े स्तर पर सोना भंडारण के लिए उच्चतम स्तर की सुरक्षा आवश्यक है।
- लॉजिस्टिक्स और लागत: विदेशी वॉल्ट्स से सोना मंगाना और भारत में सुरक्षित रखना महंगा और जटिल प्रक्रिया है।
- तरलता (Liquidity) का मुद्दा: विदेश में रखा सोना अंतरराष्ट्रीय बाजार में तुरंत गिरवी रखकर फंड जुटाने में सहायक होता है। देश के अंदर यह प्रक्रिया थोड़ी धीमी हो सकती है।
RBI इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर “धीरे लेकिन लगातार” रणनीति अपना रहा है, ताकि सुरक्षा और तरलता दोनों के बीच संतुलन बना रहे।
आर्थिक विशेषज्ञों का विश्लेषण
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम “प्रो-एक्टिव फाइनेंशियल डिप्लोमेसी” का हिस्सा है।
कई देशों के अनुभव से यह स्पष्ट हो गया है कि वित्तीय संपत्तियों को विदेशी नियंत्रण से बचाना आवश्यक है। भारत ने इस स्थिति को समय रहते समझा और अपनी नीति में परिवर्तन किया।
विश्लेषकों का कहना है कि RBI का यह कदम आने वाले वर्षों में भारतीय रिजर्व प्रबंधन का नया मानक तय कर सकता है।
यह न केवल मौद्रिक स्थिरता बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता की दिशा में भी बड़ा कदम है।
निष्कर्ष
RBI द्वारा विदेशों से 64 टन सोना वापस लाना केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और वित्तीय संप्रभुता से जुड़ा कदम है।
वैश्विक अनिश्चितताओं, युद्धों और प्रतिबंधों के दौर में यह निर्णय भारत की दूरदर्शिता और वित्तीय रणनीति को दर्शाता है।
जैसे-जैसे दुनिया “फाइनेंशियल वॉरफेयर” के युग की ओर बढ़ रही है, भारत का यह कदम आने वाले समय में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी एक उदाहरण साबित हो सकता है।










