अमेरिका-नाइजीरिया के बीच बढ़ा तनाव, लेकिन दोनों ने सहयोग की बात भी कही.
क्या हुआ?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में कहा कि नाइजीरिया में बड़ी संख्या में ईसाइयों की हत्याएं हो रही हैं।
उन्होंने दावा किया कि अगर हालात नहीं सुधरे तो वे वहां सैनिक भेज सकते हैं या एयरस्ट्राइक भी करवा सकते हैं।
ट्रम्प ने कहा –
“वे ईसाइयों को बड़ी संख्या में मार रहे हैं। हम ऐसा होने नहीं देंगे। अगर ज़रूरत पड़ी तो कार्रवाई करेंगे।”
उनके इस बयान के बाद नाइजीरिया की सरकार ने कड़े शब्दों में जवाब दिया और कहा कि ऐसा कोई “ईसाई नरसंहार” (Christian Genocide) नहीं हो रहा है।

नाइजीरिया का जवाब
नाइजीरिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता किमीएबी इबिएनफ़ा ने कहा –
“हमारे देश में कुछ जगहों पर हिंसा और आतंकी हमले हो रहे हैं, पर यह कहना गलत है कि सिर्फ ईसाई मारे जा रहे हैं।
मुस्लिम, ईसाई और दूसरे धर्मों के लोग — सभी आतंकियों के निशाने पर हैं।”
उन्होंने साफ कहा कि नाइजीरिया को अमेरिकी मदद से कोई आपत्ति नहीं,
लेकिन कोई भी कदम उसकी संप्रभुता (Sovereignty) को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
“हम सहयोग के लिए तैयार हैं, लेकिन किसी बाहरी सैन्य कार्रवाई को स्वीकार नहीं करेंगे।”
ये मामला क्यों उठा?
नाइजीरिया अफ्रीका का सबसे बड़ा देश है, जहां करीब 20 करोड़ से ज्यादा लोग रहते हैं।
देश का उत्तर भाग ज़्यादातर मुस्लिम और दक्षिण भाग ज़्यादातर ईसाई बहुल है।
पिछले 15 सालों से देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में आतंकवादी संगठन ‘बोको हराम’ और ISIS से जुड़े समूह सक्रिय हैं।
इन आतंकियों ने हजारों लोगों को मारा है, गांव जला दिए हैं और लोगों का अपहरण किया है।
ये आतंकी
- कभी मस्जिदों को उड़ाते हैं,
- कभी चर्चों में हमला करते हैं,
- कभी बाज़ारों और स्कूलों को निशाना बनाते हैं।
यानी, वे सिर्फ ईसाइयों को नहीं बल्कि सभी धर्मों के लोगों को मार रहे हैं।
ट्रम्प का दावा और विवाद
डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका में कुछ रूढ़िवादी (right-wing) समूहों की रिपोर्टों पर भरोसा किया,
जिनमें कहा गया था कि नाइजीरिया में “लाखों ईसाई” मारे जा चुके हैं।
इन्हीं रिपोर्टों के आधार पर ट्रम्प ने कहा कि—
“नाइजीरिया में ईसाइयों का कत्लेआम चल रहा है और हम चुप नहीं बैठेंगे।”
हालांकि, नाइजीरिया और कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस दावे को गलत बताया।
क्या कहता है डेटा?
अमेरिकी संस्था ACLED (जो दुनिया भर में संघर्षों का डेटा रखती है) के मुताबिक —
- साल 2025 में अब तक नाइजीरिया में 1,923 हमले नागरिकों पर हुए।
- इनमें से केवल 50 हमले ऐसे थे जिन्हें धार्मिक रूप से ईसाइयों के खिलाफ बताया गया।
यानी, यह दावा कि “ईसाइयों का नरसंहार” हो रहा है, तथ्यात्मक रूप से गलत है।
विशेषज्ञ बुलामा बुकारती ने कहा —
“यह झूठी कहानी कई सालों से कुछ पश्चिमी मीडिया में चल रही है।
ट्रम्प ने अब उसे और बढ़ा दिया है, जो खतरनाक है क्योंकि इससे समाज में विभाजन बढ़ता है।”
नाइजीरियाई राष्ट्रपति का बयान
नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टिनूबू ने भी ट्रम्प के आरोपों को खारिज किया।
उन्होंने कहा कि—
“हमारे देश में धार्मिक स्वतंत्रता पूरी तरह से सुरक्षित है।
सरकार मुस्लिम और ईसाई दोनों समुदायों का समान सम्मान करती है।”
टिनूबू खुद मुस्लिम हैं और उनकी पत्नी एक ईसाई पादरी (Pastor) हैं।
उन्होंने हाल ही में सेना में एक ईसाई अधिकारी को रक्षा प्रमुख (Defence Chief) बनाया ताकि धार्मिक संतुलन बना रहे।
अमेरिका-नाइजीरिया संबंधों पर असर
ट्रम्प के बयानों के बाद अमेरिका और नाइजीरिया के बीच कुछ तनाव जरूर बढ़ा है,
लेकिन नाइजीरिया ने स्थिति को शांत रखने की कोशिश की है।
राष्ट्रपति के सलाहकार डेनियल ब्वाला ने कहा —
“हमें ट्रम्प की बातों से नाराजगी नहीं है।
अगर अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ मदद करना चाहता है, तो हम स्वागत करेंगे – बस हमारी सीमाओं और संप्रभुता का सम्मान होना चाहिए।”
विश्लेषण
- हिंसा असली है लेकिन धार्मिक नहीं:
नाइजीरिया में आतंकवाद की समस्या बहुत गंभीर है,
लेकिन इसे सिर्फ “ईसाई बनाम मुस्लिम” कहना गलत है।
असल में ये हिंसा राजनीतिक, आर्थिक और जातीय कारणों से जुड़ी है। - बाहरी बयानबाजी से स्थिति बिगड़ सकती है:
अमेरिका जैसे बड़े देशों के नेताओं के बयान वहां के हालात को और जटिल बना सकते हैं। - स्थानीय समाधान जरूरी:
नाइजीरिया को आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मदद चाहिए,
पर निर्णय और कार्रवाई देश के अंदरूनी नियंत्रण में रहनी चाहिए। - धार्मिक विभाजन का खतरा:
अगर “ईसाई नरसंहार” जैसी बातें फैलती रहीं,
तो इससे देश में धार्मिक नफरत और बढ़ सकती है।
निष्कर्ष
नाइजीरिया में हिंसा और आतंकवाद की समस्या वास्तविक है,
पर इसे “ईसाइयों के खिलाफ जेनोसाइड” बताना गलत और खतरनाक है।
सच्चाई यह है कि वहां के आतंकवादी हर धर्म के लोगों को निशाना बना रहे हैं।
नाइजीरियाई सरकार इस चुनौती से निपटने की कोशिश कर रही है,
और अमेरिकी मदद भी चाहती है — लेकिन सैन्य दखल नहीं।
जैसा कि एक नाइजीरियाई अधिकारी ने कहा —
“हमें मदद चाहिए, मगर अपने देश की इज्जत के साथ।”








