बेंगलुरु में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक डॉक्टर ने अपनी ही पत्नी की हत्या एनेस्थीसिया की ओवरडोज़ (Propofol overdose) देकर कर दी। यह मामला शुरू में एक अप्राकृतिक मौत (Unnatural Death) माना गया था, लेकिन जब फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) की रिपोर्ट आई तो पुलिस के होश उड़ गए। रिपोर्ट में Propofol नाम की एक शक्तिशाली एनेस्थीसिया दवा पाई गई, जो सामान्य तौर पर ऑपरेशन थिएटर में दी जाती है।

आरोपी और पीड़िता कौन हैं?
आरोपी डॉक्टर का नाम डॉ. महेंद्र रेड्डी जी.एस. (Dr. Mahendra Reddy G.S.) है, जो Institute of Gastroenterology Sciences and Organ Transplant (IGOT) में सर्जिकल रेजिडेंट के रूप में काम कर रहे थे।
पीड़िता डॉ. कृतिका एम. रेड्डी (Dr. Kritika M. Reddy) थीं, जो Victoria Hospital में डर्मेटोलॉजिस्ट थीं।
दोनों की शादी मार्च 2024 में हुई थी और शादी के केवल एक साल बाद, अप्रैल 2025 में कृतिका की मौत हो गई।
क्या हुआ उस दिन?
पुलिस जांच के अनुसार, 24 अप्रैल 2025 की रात को महेंद्र ने अपनी पत्नी को Propofol इंजेक्शन दिया। उन्होंने यह कहकर दवा दी कि वह कृतिका के गैस्ट्रो (पेट दर्द) की समस्या का इलाज कर रहे हैं।
कुछ ही समय बाद कृतिका बेहोश होकर गिर पड़ीं।
महेंद्र उन्हें तुरंत कावेरी हॉस्पिटल, मराठाहल्ली लेकर पहुंचे, लेकिन वहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया (Brought Dead)।
ऑटोप्सी रोकने की कोशिश
महेंद्र ने कावेरी अस्पताल और पुलिस दोनों से अनुरोध किया कि पोस्टमार्टम (Autopsy) न किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यह “प्राकृतिक मौत” है और परिवार की भावना का सम्मान किया जाए।
यहां तक कि उन्होंने कृतिका के पिता के. मुनि रेड्डी से भी पुलिस को समझाने को कहा कि पोस्टमार्टम न किया जाए।
लेकिन पुलिस को मामला संदिग्ध लगा और उन्होंने ऑटोप्सी करवाने का निर्णय लिया। यही निर्णय इस पूरे केस की कुंजी साबित हुआ।
फॉरेंसिक रिपोर्ट ने खोला राज़
कुछ महीनों बाद आई फॉरेंसिक साइंस लैब (FSL) रिपोर्ट में यह साफ हुआ कि कृतिका की बॉडी के विसरा सैंपल (Viscera Sample) में Propofol पाया गया।
यह वही दवा है जो सर्जरी के दौरान बेहोशी के लिए दी जाती है, लेकिन इसकी ओवरडोज़ जानलेवा होती है।
पुलिस कमिश्नर सीमांत कुमार सिंह ने बताया कि अब यह केस अप्राकृतिक मौत से बदलकर जानबूझकर की गई हत्या (Cold-blooded Murder) बन गया है।
पुलिस जांच और गिरफ्तारियां
रिपोर्ट आने के बाद डॉ. महेंद्र रेड्डी को गिरफ्तार कर लिया गया।
उन्हें 7 दिन की पुलिस कस्टडी में भेजा गया है ताकि आगे पूछताछ हो सके।
पुलिस के अनुसार, महेंद्र शादी के बाद से ही अपनी पत्नी की स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर परेशान थे।
उनका कहना है कि कृतिका के परिवार ने उनकी बीमारी की सच्चाई छिपाई थी, जिससे महेंद्र नाराज़ रहते थे।
शक और गुस्से से बना ‘मौत का इलाज’
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, महेंद्र ने कृतिका को इलाज के बहाने Propofol इंजेक्शन दिया, जो धीरे-धीरे दिल की धड़कन रोक देता है।
महेंद्र को इस दवा के सटीक असर का पूरा ज्ञान था क्योंकि वह खुद एक सर्जन थे।
यही कारण है कि पुलिस का मानना है — यह कोई हादसा नहीं, बल्कि सोची-समझी हत्या (Planned Murder) थी।
अब आगे क्या?
पुलिस ने IPC की धारा 302 (हत्या) के तहत केस दर्ज किया है।
इसके अलावा, उन्होंने आरोपी के खिलाफ सबूत छिपाने और भ्रामक बयान देने का आरोप भी जोड़ा है।
महेंद्र के फोन रिकॉर्ड, अस्पताल लॉगबुक और दवा खरीद के रसीदों की भी जांच चल रही है।
समाज और चिकित्सा जगत के लिए सबक
यह मामला सिर्फ एक हत्या नहीं है — यह मानवता और चिकित्सा नैतिकता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
एक डॉक्टर, जिसे मरीजों की जान बचाने की शपथ दी गई थी, वही अपनी पत्नी की जान ले लेता है — वो भी उसी ज्ञान का दुरुपयोग करके जो लोगों की जान बचाने के लिए सीखा गया था।
निष्कर्ष
“मौत की एनेस्थीसिया” केस ने यह साबित किया है कि जब पेशेवर ज्ञान का गलत उपयोग होता है, तो वह इंसान को राक्षस बना सकता है।
डॉ. महेंद्र रेड्डी ने जो किया, उसने न सिर्फ एक जीवन छीना, बल्कि डॉक्टरी पेशे की प्रतिष्ठा पर भी दाग लगाया है।
अब अदालत से यही उम्मीद है कि कृतिका को न्याय मिले और ऐसे मामलों में कठोर सज़ा देकर समाज को संदेश दिया जाए कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।