नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण के नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। संसद की एक समिति ने सुझाव दिया है कि क्रीमी लेयर की आय सीमा पूरे देश में और हर सेक्टर में एक जैसी होनी चाहिए।
अभी अलग-अलग क्षेत्रों जैसे केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पीएसयू (सरकारी कंपनियां), यूनिवर्सिटी और प्राइवेट सेक्टर में यह नियम अलग-अलग तरीके से लागू होता है।
अगर यह बदलाव लागू होता है, तो यह आरक्षण व्यवस्था में अब तक का एक बड़ा सुधार माना जाएगा। इसका असर सरकारी नौकरियों, प्राइवेट नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले पर पड़ेगा।

क्रीमी लेयर क्या होती है?
‘क्रीमी लेयर’ का मतलब है — ओबीसी समुदाय में ऐसे लोग जो आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से आगे निकल चुके हैं और जिनकी स्थिति सामान्य वर्ग के बराबर या उससे भी बेहतर है।
ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता, ताकि यह फायदा वास्तव में पिछड़े और ज़रूरतमंद वर्ग तक पहुंच सके।
क्रीमी लेयर की अवधारणा 1992 में सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस में आई थी। कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी में भी जो लोग अमीर और प्रभावशाली हैं, वे आरक्षण के दायरे में नहीं आने चाहिए।
मौजूदा नियम क्या है?
- वर्तमान आय सीमा: ₹8 लाख प्रति वर्ष (2017 में तय हुई, पहले ₹6.5 लाख थी)
- सीमा की समीक्षा हर 3 साल में होनी चाहिए, लेकिन 2017 के बाद से अब तक नहीं बदली।
- बड़े सरकारी पद (ग्रुप-ए और ग्रुप-बी), उच्च स्तर के अधिकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के वरिष्ठ कर्मचारी, बड़े व्यवसायी, पेशेवर, संपत्ति के मालिक — ये क्रीमी लेयर में आते हैं।
समिति का सुझाव
भाजपा सांसद गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने कहा है कि:
“क्रीमी लेयर की आय सीमा पूरे देश और सभी क्षेत्रों में समान होनी चाहिए, ताकि आरक्षण का लाभ असली जरूरतमंदों को मिले।” — गणेश सिंह, अध्यक्ष, ओबीसी मामलों पर संसद की स्थायी समिति”
- आय सीमा पूरे देश में एक जैसी होनी चाहिए।
- यह सीमा केवल केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए न होकर, राज्य सरकार, पीएसयू, यूनिवर्सिटी, प्राइवेट सेक्टर सभी पर लागू होनी चाहिए।
- यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और बड़े शिक्षण पद, जिनका वेतन ग्रुप-ए अफसरों के बराबर या ज्यादा है, उन्हें भी क्रीमी लेयर में गिना जाए।
इससे इन परिवारों के बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
क्यों जरूरी माना जा रहा है?
- निष्पक्षता: अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नियम होने से गड़बड़ी होती है और कुछ लोग अनुचित लाभ ले लेते हैं।
- महंगाई और आय में वृद्धि: 8 लाख की सीमा अब पुरानी हो गई है, और कई आर्थिक रूप से मजबूत लोग भी गैर-क्रीमी लेयर में गिने जा रहे हैं।
- असली लाभार्थी: बदलाव से सुनिश्चित होगा कि आरक्षण का फायदा वही लोग लें जो वाकई पिछड़े हैं।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
- 1992 (इंदिरा साहनी केस): आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल न करने का आदेश।
- 2008 (अशोक कुमार ठाकुर केस): इस सिद्धांत को बरकरार रखा और स्पष्ट किया कि शिक्षा व आर्थिक स्थिति दोनों देखी जाएं।
- हाल में कोर्ट ने ‘मेरिट-कम-इनकम’ (योग्यता + आय) पॉलिसी पर विचार की बात कही है, ताकि सबसे पिछड़े वर्ग को ही आरक्षण का लाभ मिले।
संभावित असर
- सरकारी नौकरियां:
- कई उच्च पद वाले ओबीसी कर्मचारी क्रीमी लेयर में आ जाएंगे।
- उनके बच्चों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलेगा।
- शिक्षा संस्थान:
- यूनिवर्सिटी प्रोफेसर जैसे उच्च वेतन वाले शिक्षण कर्मचारी क्रीमी लेयर में आ सकते हैं।
- प्रवेश प्रक्रिया में गैर-क्रीमी लेयर छात्रों के लिए ज्यादा अवसर बनेंगे।
- निजी क्षेत्र:
- पहली बार निजी कंपनियों में काम करने वाले ओबीसी परिवारों पर भी यह सीमा लागू हो सकती है।
सरकार का रुख
- सरकार ने संसद में कहा है कि अभी इस सीमा में बदलाव का कोई पक्का प्रस्ताव नहीं है।
- लेकिन समिति की रिपोर्ट आने के बाद मंत्रालयों और नीति आयोग के बीच चर्चा चल रही है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
सालाना ₹8 लाख (2017 से लागू)।
केंद्र के लिए नियम तय है, लेकिन राज्यों की सीमा अलग हो सकती है। प्रस्ताव है कि अब पूरे देश में एक जैसी सीमा हो।
असर उन ओबीसी परिवारों पर पड़ेगा जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उच्च पदों पर काम करते हैं।
– लाभ असली ज़रूरतमंदों को मिलेगा।
1992 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से।
महंगाई, आय में वृद्धि और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए।
नतीजा
अगर मोदी सरकार समिति के सुझाव मानती है, तो यह बदलाव आरक्षण व्यवस्था में एक बड़ा कदम होगा। इससे आरक्षण का असली मकसद — सामाजिक न्याय और पिछड़ों को अवसर — और मजबूत हो जाएगा।
- Review of the Creamy Layer Limit, Parliamentary Committee on Welfare of OBCs। Digital Sansad