लोकपाल ऑफ इंडिया ने अपने इस्तेमाल के लिए 7 हाई-एंड BMW कारें खरीदने का फैसला किया है। इसके लिए उसने 16 अक्टूबर को एक टेंडर जारी किया है। इस टेंडर के अनुसार, लोकपाल को BMW 3 Series 330Li Sport (Long Wheelbase) मॉडल चाहिए, वो भी सफेद रंग में।

इन कारों की ऑन-रोड कीमत करीब 70 लाख रुपये प्रति कार है। यानी सात गाड़ियों की कुल कीमत लगभग 5 करोड़ रुपये बैठेगी। टेंडर में साफ लिखा है कि गाड़ियां दिल्ली के वसंत कुंज स्थित लोकपाल कार्यालय में दो हफ्तों के अंदर पहुंच जानी चाहिए। अगर किसी वजह से देरी हो, तो भी यह काम 30 दिनों के भीतर पूरा होना जरूरी है।
टेंडर में यह भी कहा गया है कि जो भी कंपनी ये गाड़ियां सप्लाई करेगी, उसे लोकपाल के ड्राइवरों और स्टाफ को 7 दिन की ट्रेनिंग देनी होगी — ताकि वे इन लग्जरी गाड़ियों को सही और सुरक्षित तरीके से चला सकें। यह ट्रेनिंग गाड़ियां मिलने के 15 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी।
लोकपाल क्या है?
लोकपाल एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है, जो सरकारी अफसरों और जनप्रतिनिधियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करती है। इसे लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के तहत बनाया गया था।
इसमें एक चेयरपर्सन और छह सदस्य होते हैं। चेयरपर्सन का वेतन भारत के मुख्य न्यायाधीश के बराबर होता है, जबकि बाकी सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट के जजों के बराबर वेतन और सुविधाएं मिलती हैं।
अब सवाल उठ रहे हैं…
लोकपाल जैसी संस्था का काम भ्रष्टाचार की जांच करना है, लेकिन जब वही संस्था 70 लाख की लग्जरी BMW कारें खरीदने की बात करती है, तो लोगों के मन में सवाल उठना स्वाभाविक है।
कई लोगों का कहना है कि क्या इतनी महंगी कारों की वाकई जरूरत है? क्या लोकपाल के पास पहले से कोई सरकारी गाड़ियां नहीं हैं?
इस पर कुछ लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि इतने बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद वाहन जरूरी होते हैं, और BMW जैसी कारें सुरक्षा और आराम दोनों देती हैं।
BMW 3 Series Long Wheelbase क्या है?
BMW की यह कार अपने लंबे व्हीलबेस और आरामदायक पिछली सीट के लिए जानी जाती है। कंपनी का दावा है कि यह कार अपने सेगमेंट में सबसे ज्यादा स्पेस और लग्जरी रियर सीट एक्सपीरियंस देती है।
इसलिए इसे अक्सर VIP मूवमेंट या बड़े अधिकारियों की यात्रा के लिए चुना जाता है।
लोगों की प्रतिक्रिया
इस खबर के सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोग दो हिस्सों में बंट गए हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि –
“लोकपाल जैसे संस्थान को सादगी और ईमानदारी की मिसाल बनना चाहिए, न कि महंगी गाड़ियों से दिखावा करना चाहिए।”
वहीं, कुछ अन्य लोग कह रहे हैं –
“लोकपाल के सदस्य भी देश के सर्वोच्च पदों पर हैं, उनके लिए आधुनिक और सुरक्षित गाड़ियों की व्यवस्था होना गलत नहीं है।”
निष्कर्ष
लोकपाल का यह कदम चर्चा और विवाद दोनों लेकर आया है।
जहां एक ओर यह कहा जा सकता है कि यह एक सामान्य प्रशासनिक फैसला है, वहीं दूसरी ओर जनता यह भी उम्मीद करती है कि भ्रष्टाचार से लड़ने वाली संस्था खुद खर्च में पारदर्शिता और सादगी दिखाए।
अब देखना यह होगा कि यह टेंडर किस कंपनी को मिलता है और क्या लोकपाल इन गाड़ियों की खरीद पर साफ-सुथरी प्रक्रिया और जवाबदेही दिखा पाता है या नहीं।








