अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अपने विवादित बयानों और नीतियों के चलते सुर्खियों में हैं। जहाँ एक ओर उन्होंने भारत सहित कई देशों पर टैरिफ की मार बढ़ा दी है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने चीन को एक बड़ा ऑफर दिया है। यह विरोधाभासी कदम न सिर्फ अमेरिका की आंतरिक राजनीति बल्कि भारत और चीन जैसे देशों की कूटनीतिक स्थिति पर भी असर डाल सकता है।

चीन को ट्रंप का बंपर ऑफर
- ट्रंप ने घोषणा की है कि अमेरिका 6 लाख चीनी छात्रों को शिक्षा और शोध के लिए आमंत्रित करेगा।
- उन्होंने स्पष्ट कहा कि छात्र-छात्राओं को अमेरिका-चीन के व्यापारिक विवादों से नुकसान नहीं होने दिया जाएगा।
- उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव लगातार बढ़ रहा है।
शर्त: चीन से दुर्लभ खनिज उपलब्ध कराए जाएँ
- ट्रंप ने चीनी छात्रों को बुलाने के साथ-साथ एक बड़ी शर्त भी रख दी।
- उन्होंने कहा कि चीन को अमेरिका को दुर्लभ खनिज (Rare Earth Minerals) आसानी से उपलब्ध कराने होंगे।
- अगर ऐसा नहीं होता है, तो ट्रंप ने चेतावनी दी कि वह चीन से आने वाले उत्पादों पर 200% टैरिफ लगाने में पीछे नहीं हटेंगे।
ट्रंप समर्थकों की नाराज़गी
- “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) अभियान के समर्थक ट्रंप के इस फैसले से खुश नहीं हैं।
- उनका कहना है कि जब अमेरिका में इमिग्रेशन पर पाबंदियाँ लग रही हैं, तो इतनी बड़ी संख्या में चीनी छात्रों को बुलाना अमेरिकी हितों के खिलाफ है।
- सोशल मीडिया पर कई रिपब्लिकन समर्थक इसे “डबल स्टैंडर्ड” बता रहे हैं।
भारत पर बढ़ा बोझ
- ट्रंप की नीति का सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ता दिख रहा है।
- अमेरिका ने भारत से आने वाले कई उत्पादों पर 50% तक टैरिफ लागू कर दिया है।
- यह कदम ऐसे समय में आया है जब भारत-अमेरिका के बीच व्यापारिक सहयोग को मजबूत करने की कोशिशें चल रही थीं।
- खासकर आईटी, स्टील, एल्युमिनियम और टेक्सटाइल सेक्टर पर इसका भारी असर पड़ेगा।
भारतीय छात्रों की चिंता
- ट्रंप प्रशासन लगातार इमिग्रेशन और वीज़ा नियम सख्त करता जा रहा है।
- इससे अमेरिका में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
- जबकि चीनी छात्रों को आमंत्रित करने का ऑफर भारत के छात्रों के लिए एक तरह से अन्यायपूर्ण संकेत है।
SCO बैठक और भारत-चीन संबंध
- इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही चीन में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक में शामिल होने जा रहे हैं।
- यह यात्रा इसलिए अहम है क्योंकि 7 साल बाद मोदी चीन जा रहे हैं।
- गलवान घाटी की झड़पों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में गहरी दरार आई थी।
- ऐसे में मोदी की यह यात्रा भारत-चीन संबंधों और क्षेत्रीय राजनीति में नए संकेत दे सकती है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
- अमेरिका का यह नया रुख बताता है कि ट्रंप कठोर टैरिफ नीति और नरम शिक्षा नीति का मिला-जुला इस्तेमाल कर रहे हैं।
- एक तरफ चीन से खनिजों की सप्लाई सुनिश्चित करना चाहते हैं, दूसरी तरफ शिक्षा के नाम पर सहयोग बढ़ा रहे हैं।
- भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति मुश्किल इसलिए है क्योंकि उन्हें अमेरिका से आर्थिक दबाव झेलना पड़ रहा है, जबकि चीन को ट्रंप एक अवसर दे रहे हैं।
विश्लेषण (Analysis)
1. भारत के लिए चुनौती
भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ सीधे तौर पर निर्यात को प्रभावित करेगा। इससे भारतीय कंपनियों की अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच कमजोर हो सकती है। आईटी सेक्टर पर नियम कड़े होने से युवाओं और छात्रों को भी नुकसान होगा।
2. चीन के लिए अवसर
भले ही अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव बना हुआ है, लेकिन ट्रंप का छात्रों को बुलाने का ऑफर चीन के लिए एक राजनयिक राहत जैसा है। यह चीन को अमेरिका से खनिज सौदों में नरमी बरतने पर मजबूर कर सकता है।
3. अमेरिका की आंतरिक राजनीति
MAGA समर्थकों की नाराज़गी बताती है कि ट्रंप के फैसले सिर्फ वैश्विक राजनीति पर आधारित नहीं हैं, बल्कि वे घरेलू राजनीति में भी असर डाल रहे हैं। इमिग्रेशन के मुद्दे पर रिपब्लिकन खेमे में ही मतभेद पैदा हो सकते हैं।
4. भारत-चीन समीकरण
मोदी की चीन यात्रा और SCO बैठक का समय बेहद अहम है। भारत को अमेरिका और चीन दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा। खासकर तब, जब अमेरिका भारत पर दबाव बढ़ा रहा है और चीन के साथ तनाव अभी भी कम नहीं हुआ है।
निष्कर्ष
ट्रंप का यह कदम साफ दिखाता है कि वैश्विक राजनीति में हित पहले, रिश्ते बाद में वाली सोच हावी है। भारत के लिए यह एक कठिन समय है क्योंकि उसे एक तरफ अमेरिका की टैरिफ मार सहनी पड़ रही है और दूसरी तरफ चीन के साथ रिश्तों को संभालना है। आने वाले समय में SCO बैठक और भारत की कूटनीतिक रणनीति यह तय करेगी कि भारत इस नई वैश्विक चालबाज़ी में अपने हितों को कितना बचा पाता है।
- Reuters: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अगर चीन दुर्लभ खनिज (rare earth magnets) अमेरिका को उपलब्ध नहीं कराएगा, तो वह 200 % टैरिफ लगा सकते हैं, और साथ ही उन्होंने 600,000 चीनी छात्रों को अमेरिका में अध्ययन करने की अनुमति देने की घोषणा भी की Reuters. Investopedia.