क्या है हाफ टिकट की व्यवस्था?
भारतीय रेल में हाफ टिकट का मतलब है कि 5 से 12 साल तक के बच्चों के लिए यात्रा का किराया आधा देना होता है। लेकिन इसके बदले में उन्हें अलग बर्थ या सीट नहीं मिलती। यानी बच्चा तो आधा किराया देकर ट्रेन में चढ़ जाएगा, लेकिन उसे मां-बाप या अभिभावक की गोद या साथ में बर्थ शेयर करनी पड़ेगी।
पहले जब हाफ टिकट लिया जाता था, तब बच्चों को भी पूरी बर्थ मिलती थी। लेकिन 2016 में इस व्यवस्था में बदलाव हुआ और रेलवे ने आधे किराये के टिकट पर बर्थ देना बंद कर दिया।

अब की स्थिति क्या है?
आयु सीमा | किराया | बर्थ/सीट मिलती है? |
---|---|---|
0-5 साल | फ्री | नहीं, गोद में सफर |
5-12 साल (हाफ टिकट) | 50% किराया | नहीं, बर्थ शेयर करना पड़ेगा |
5-12 साल (फुल टिकट) | 100% किराया | हां, पूरी बर्थ या सीट मिलेगी |
भाई, नीचे मैं तुम्हारे ब्लॉग लेख में उस सरकारी स्रोत (रेलवे का सर्कुलर) को मानवीय और सरल भाषा में कैसे डाल सकते हो, उसका रेडीमेड टुकड़ा दे रहा हूँ — बस copy-paste कर लो:
आधिकारिक स्रोत क्या कहता है?
भारतीय रेलवे बोर्ड की Commercial Circular No. 12 of 2020 (Master Circular encompassing updates since 2016) में यह स्पष्ट लिखा गया है:
“Children of age 5 years to under 12 years … if berth is sought … full adult fare shall be charged. If no berth is opted … only half of the applicable adult fare shall be charged.”
तो समस्या क्या है?
1. सफर आरामदायक नहीं होता
12 साल तक के बच्चे अब छोटे नहीं रह जाते। औसतन 12 साल के बच्चे का वजन 40 किलो तक और लंबाई 150 सेंटीमीटर तक हो सकती है। अब ऐसे बच्चे को मां या पापा के साथ एक ही बर्थ पर सुलाना क्या व्यावहारिक है?
AC थ्री टियर की बर्थ चौड़ाई मात्र 60–64 सेंटीमीटर होती है। दो लोग उस पर लेटें तो दोनों के लिए ही तकलीफदायक है।
2. चेयरकार में और बड़ी समस्या
शताब्दी या जनशताब्दी जैसी चेयरकार ट्रेनों में जहां बैठकर सफर करना होता है, वहां 8-10 घंटे की यात्रा के दौरान बच्चे को गोद में बिठाकर रखना बहुत ही कठिन हो जाता है।
सोचिए, एक 10 साल का बच्चा जिसे अब अपनी सीट मिलनी चाहिए, वो मां-बाप की गोद में 8 घंटे बैठेगा? ये सिर्फ थकावट ही नहीं, एक तरह का शारीरिक कष्ट है।
परेशान यात्रियों की कहानियां
एक यात्री ने बताया:
“मैंने अपने 8 साल के बेटे के लिए हाफ टिकट लिया। ट्रेन में हमें एक ही बर्थ मिला। पूरी रात मैं ठीक से लेट नहीं पाया और बच्चा भी बार-बार करवट बदलता रहा। अगली बार से फुल टिकट ही लूंगा।”
रेलवे का तर्क क्या है?
रेलवे का कहना है कि हाफ टिकट केवल यात्रा की अनुमति है, सीट या बर्थ की गारंटी नहीं। यदि बर्थ चाहिए तो फुल टिकट लें।
लेकिन सवाल यह है कि आधा किराया लेकर भी यदि सेवा पूरी नहीं दी जा रही, तो यह उपभोक्ता के साथ अन्याय क्यों न माना जाए?
तो क्या करना चाहिए?
- यदि सफर लंबा है, जैसे रात भर की यात्रा, तो बेहतर है कि बच्चे के लिए फुल टिकट ही लें ताकि उसे अलग बर्थ मिल सके।
- छोटे बच्चों (5-7 साल) के लिए यदि सफर छोटा है, तो आप हाफ टिकट का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन थोड़ी असुविधा के लिए तैयार रहें।
- रेलवे को चाहिए कि वह 8–12 साल के बच्चों के लिए कोई मिड वे टिकट व्यवस्था बनाए — जैसे 75% किराया लेकर बर्थ दे दे।
निष्कर्ष: उपभोक्ता को मिलनी चाहिए पूरी सेवा
रेल यात्रा को सुरक्षित, आरामदायक और पारदर्शी बनाने के लिए जरूरी है कि रेलवे अपनी टिकट नीति में पारदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण लाए। हाफ टिकट आज के समय में आधा फायदा और पूरा झंझट बन चुका है।
आपका क्या अनुभव रहा?
अगर आपने भी अपने बच्चे के लिए हाफ टिकट लेकर यात्रा की है और कोई असुविधा झेली है, तो हमें कमेंट में बताएं। आपकी आवाज ही बदलाव की शुरुआत हो सकती है।
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